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ग़ज़ल
ख़राब कोशक-ए-सुल्तान ओ ख़ानक़ाह-ए-फ़क़ीर
फ़ुग़ाँ कि तख़्त ओ मुसल्ला कमाल-ए-रज़्ज़ाक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मिरे आगे तो अब कुछ दिन से हर आँसू मोहब्बत का
कनार-ए-आब-ए-रुक्नाबाद ओ गुलगश्त-ए-मुसल्ला है
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
दीदा-ए-नम पे बिछा कर ही मुसल्ला दिल का
अश्क बन कर मिरे जज़्बों की इमामत करिए
आरज़ू अशरफ़ सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
बज़्म से साक़ी के हम से रिंद निकले पाक-साफ़
अपना अब का'बे में पहुँचेगा मुसल्ला इक और
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
लग़्ज़िशें मेरी मुसल्लम इब्तिदा-ए-इश्क़ में
आप को भी कुछ ख़बर थी आप को भी होश था