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ग़ज़ल
हुआ है अक्सर कि अपना सज्दा बदल गया है मुराक़बे में
वगरना हम और मुसल्ली अपना उठा भी लेते अज़ाँ से पहले
अमर अबदाबादी
ग़ज़ल
मैं उस को हर रोज़ बस यही एक झूट सुनने को फ़ोन करता
सुनो यहाँ कोई मसअला है तुम्हारी आवाज़ कट रही है
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
मोहब्बत के ये आँसू हैं उन्हें आँखों में रहने दो
शरीफ़ों के घरों का मसअला बाहर नहीं जाता