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ग़ज़ल
तबीब आरवी
ग़ज़ल
शब में सहर में शाम में तेरी तलाश हो
जैसे किसी ग़रीब को फ़िक्र-ए-मआ'श हो
सय्यद मोहम्मद मेहदी अली
ग़ज़ल
जो मुश्त-ए-ख़ाक हो उस ख़ाक-दाँ की बात करो
ज़मीं पे रह के न तुम आसमाँ की बात करो
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
ज़मीं से शुक्र ओ शिकायत है आसमाँ से नहीं
कि हम यहीं से हैं जो कुछ भी हैं वहाँ से नहीं