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ग़ज़ल
निगाहें मुश्तबा हैं मेरी पाकीज़ा निगाहों पर
मिरे मासूम दिल पर उन को धोका और ही कुछ है
सेहर इश्क़ाबादी
ग़ज़ल
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
ग़ज़ल
मोहब्बत मर गई 'मुश्ताक़' लेकिन तुम न मानोगे
मैं ये अफ़्वाह भी तुम को सुना कर देख लेता हूँ
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
शहादत की ख़ुशी ऐसी है मुश्ताक़-ए-शहादत को
कभी ख़ंजर से मिलता है कभी क़ातिल से मिलता है