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ग़ज़ल
सौदा जो 'सब्र' मुझ को है मिज़्गान-ए-यार का
नश्तर ही बन गए हैं मिरे मू-ए-तन तमाम
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
इतने पर भी ज़ात-ए-वाहिद से हैं ग़ाफ़िल नाक़िसाँ
खिंच रहा है मू-ए-तन से तन पे सर-ता-पा अलिफ़
जोशिश अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
न होती दिल में काविश गर किसी की नोक-ए-मिज़्गाँ की
तो क्यूँ हक़ में मिरे हर मू-ए-तन मिस्ल-ए-सिनाँ होता
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
तअज्जुब कुछ नहीं है गर वफ़ूर-ए-सोज़-ए-फ़ुर्क़त से
मिरा हर मू-ए-तन मिन्क़ार-ए-मौसीक़ार बन जाए
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
करे क्या साज़-ए-बीनिश वो शहीद-ए-दर्द-आगाही
जिसे मू-ए-दिमाग़-ए-बे-ख़ुदी ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तकलीफ़-ए-तकल्लुफ़ से किया इश्क़ ने आज़ाद
मू-ए-सर-ए-शोरीदा हैं क़ाक़ुम से ज़ियादा
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
तकलीफ़-ए-तकल्लुफ़ से किया इश्क़ ने आज़ाद
मू-ए-सर-ए-शोरीदा हैं क़ाक़ुम से ज़ियादा
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
मू-ए-आतिश-दीद साँ बल खाए वो मू-ए-कमर
मैं जो लिक्खूँ गर्म मज़मूँ उस तिलाई डाब का
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
वाह-रे शाने की क़िस्मत किस को ये मालूम था
पंजा-ए-शल से खुलेंगे उक़्दा-हा-ए-मू-ए-दोस्त
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
ये दिल वो शीशा है झमके है वो परी जिस में
भरा है मू-ए-ब-मू सेहर-ए-सामरी जिस में