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ग़ज़ल
किश्त-ओ-ख़ूँ में कट रहे हैं इस तरह लोगों के सर
आदमी है आज-कल मूली का या गाजर का नाम
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
अपना रोना रोने वाले तू किस खेत की मूली है
इश्क़ ने तुझ से पहले जाने कितनों को राहगीर किया
मुक़द्दस मालिक
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है