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ग़ज़ल
शैख़ जो है मस्जिद में नंगा रात को था मय-ख़ाने में
जुब्बा ख़िर्क़ा कुर्ता टोपी मस्ती में इनआ'म किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
उस को तो पैराहनों से कोई दिलचस्पी न थी
दुख तो ये है रफ़्ता रफ़्ता मैं भी नंगा रह गया
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
रेड-लाइट पे नंगा बच्चा कर्तब दिखलाता था
रोज़ का चलने वाला राही रोज़ 'अश-'अश करता था
ओसामा ज़ाकिर
ग़ज़ल
सब ने हम को ख़ुश-हाली के ख़्वाब दिखा कर छोड़ दिया
गलियों गलियों घूम रहा है धूल में लिपटा नंगा सच
बद्र वास्ती
ग़ज़ल
सपने की वादी को तज कर रूप-नगर में आया कर
दिन के फैले काग़ज़ पर अपनी तस्वीर बनाया कर
माजिद-अल-बाक़री
ग़ज़ल
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
बे-सबब सड़कों पे आवारा सा इक नंगा बदन
कोई दीवाना है ज़ख़्मों की क़बा माँगता है