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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
सरगोशी करते पर्दे कुंडी खटकाता नट-खट दिन
दबे दबे क़दमों से तपती छत पर जाती दो-पहरें
इशरत आफ़रीं
ग़ज़ल
क्या लड़के दिल्ली के हैं अय्यार और नट-खट
दिल लें हैं यूँ कि हरगिज़ होती नहीं है आहट