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ग़ज़ल
चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वर्ना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
दिल ये कहता है कि शायद है फ़सुर्दा तू भी
दिल की क्या बात करें दिल तो है नादाँ जानाँ
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
समझते ही नहीं नादान कै दिन की है मिल्किय्यत
पराए खेतों पे अपनों में झगड़ा होने लगता है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
नादाँ हो जो कहते हो कि क्यूँ जीते हैं 'ग़ालिब'
क़िस्मत में है मरने की तमन्ना कोई दिन और
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
उस के ज़ख़्म छुपा कर रखिए ख़ुद उस शख़्स की नज़रों से
उस से कैसा शिकवा कीजे वो तो अभी नादान हुआ
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
ऐ वाइज़-ए-नादाँ करता है तू एक क़यामत का चर्चा
याँ रोज़ निगाहें मिलती हैं याँ रोज़ क़यामत होती है
सबा अफ़ग़ानी
ग़ज़ल
नासेहा दिल में तू इतना तो समझ अपने कि हम
लाख नादाँ हुए क्या तुझ से भी नादाँ होंगे