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ग़ज़ल
नीम की छाँव में बैठने वाले सभी के सेवक होते हैं
कोई नाग भी आ निकले तो उस को दूध पिला देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
मैं ने ज़ुल्फ़ों को छुआ हो तो डसें नाग मुझे
बे-ख़ता आप ने इल्ज़ाम लगा रक्खा है
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
सुब्ह नहाने जूड़ा खोले नाग बदन से आ लिपटें
उस की रंगत उस की ख़ुश्बू कितनी मिलती संदल में
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
बलाएँ नाग काले नागिनें और साँप के बच्चे
ख़ुदा जाने कि इस जूड़े में क्या क्या बाँध डाला है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ मोहब्बत का कारोबार चले
मज़ा तो जब है कि हर लम्हा ज़िक्र-ए-यार चले
मैकश नागपुरी
ग़ज़ल
नाग-फनी सा शोला है जो आँखों में लहराता है
रात कभी हमदम न बनी और नींद कभी मरहम न हुई
साक़ी फ़ारुक़ी
ग़ज़ल
मिरी हर ख़ुशी ख़ुशी थी तिरी हर ख़ुशी से पहले
मुझे कोई ग़म नहीं था ग़म-ए-आशिक़ी से पहले
मैकश नागपुरी
ग़ज़ल
मआ'ल क्या है उजालों के उन दफ़ीनों का
जिन्हें छुएँ तो अंधेरों के नाग डसते हैं