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ग़ज़ल
नाला-ए-दिल में मिरे अब वो असर हो कि न हो
क्या पता उन को मिरे ग़म की ख़बर हो कि न हो
नासिर अंसारी
ग़ज़ल
वाक़िफ़ हैं मेरे नाला-ए-दिल के असर से आप
बेचैन हैं जो सदमा-ए-दर्द-ए-जिगर से आप
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
नाला-ए-दिल की सदा दीवार में है दर में है
सूर या महशर में होगा या हमारे घर में है