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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
जो तुम्हारी मान लें नासेहा तो रहेगा दामन-ए-दिल में क्या
न किसी अदू की अदावतें न किसी सनम की मुरव्वतें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
नासेहा दिल में तू इतना तो समझ अपने कि हम
लाख नादाँ हुए क्या तुझ से भी नादाँ होंगे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
ये हवस के बंदे हैं नासेहा न समझ सके मिरा मुद्दआ'
मुझे प्यार है किसी और से मिरा दिल-रुबा कोई और है
दर्शन सिंह
ग़ज़ल
जिस ने दिल मेरा दिया दाम-ए-मोहब्बत में फँसा
वो नहीं मालूम मुज को नासेहा क्या चीज़ है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
अलग अपनी राह ले नासेहा मुझे तेरे राह-नुमा से क्या
तिरा राहबर कोई और है मिरा राहबर कोई और है
पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
मिरी बे-रुख़ी से न हो ख़फ़ा मिरे नासेहा मुझे ये बता
जो नज़र से पीता हूँ मैं यहाँ वो शराब कैसे हराम है