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ग़ज़ल
मुसलसल कहते रहना दर्द दिल आँखों ही आँखों में
ज़बान इश्क़ में 'नातिक़' इसे तक़रीर कहते हैं
नातिक़ लखनवी
ग़ज़ल
क्यूँ बहर-ए-मोहब्बत में है ख़ौफ़-ए-अजल 'नातिक़'
मरने को तो मरते हैं दरिया के किनारे भी
नातिक़ लखनवी
ग़ज़ल
चाँदी वाले, शीशे वाले, आँखों वाले शहर में
खो गया इक शख़्स मुझ से, देखे-भाले शहर में