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ग़ज़ल
हुजूम-ए-ग़म-गुसाराँ यूँ तो है हर गाम पर लेकिन
जिसे हम ढूँडते हैं 'नाज़' वो अक्सर नहीं मिलता
नाज़ बट
ग़ज़ल
तुम उस को बेवफ़ा ऐ 'नाज़' साबित कर न पाओगे
बड़ी लम्बी सी इक फ़ेहरिस्त है उस पर बहानों की
कृष्ण कुमार नाज़
ग़ज़ल
कहाँ ख़ंजर भी दस्त-ए-नावक-ए-क़ातिल से उठता है
नज़ाकत से हिना का बार भी मुश्किल से उठता है
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
सख़्त-जाँ ही नहीं हम ख़ुद-सर-ओ-ख़ुद्दार भी हैं
नावक-ए-नाज़ ख़ता है तो ख़ता हो साक़ी