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ग़ज़ल
वादी-ए-ऐमन बन सकती है शो'ला-ए-नय से बज़्म-ए-तरब
सोज़ सरापा बन जाता है सोज़-ए-नफ़स की बात नहीं
अनवर अली ख़ान सोज़
ग़ज़ल
जिए हैं गर्म नफ़स सोज़ से कि बहर-ए-चराग़
करे है शोला ही काम आब-ए-ज़ि़ंदगानी का
ममनून निज़ामुद्दीन
ग़ज़ल
यक नफ़स-सोज़ से मुमकिन नहीं तकमील-ए-ग़ज़ल
हर-नफ़स शो'ला-ब-जाँ हो तो ग़ज़ल होती है
शिव दयाल सहाब
ग़ज़ल
मक़ाम-ए-गुफ़्तुगू क्या है अगर मैं कीमिया-गर हूँ
यही सोज़-ए-नफ़स है और मेरी कीमिया क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दिमाग़-ए-सैर-ए-नफ़स सोज़-ओ-साज़-ए-रंज-ओ-निशात
मियान-ए-बीम-ओ-रजा है ये बूद-ओ-हस्त मिरा
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
नसीम-ए-सुब्ह तो क्या तुंद-ख़ू हवा भी नहीं
ये क्या सितम है कि वो मुझ से अब ख़फ़ा भी नहीं
एहसान नानपर्वी
ग़ज़ल
हम-नफ़स ख़्वाब-ए-जुनूँ की कोई ता'बीर न देख
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
अब्दुल मतीन नियाज़
ग़ज़ल
वाँ हुजूम-ए-नग़्मा-हाए साज़-ए-इशरत था 'असद'
नाख़ुन-ए-ग़म याँ सर-ए-तार-ए-नफ़स मिज़राब था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हुस्न-ए-आलम-सोज़ ना-महदूद होना चाहिए
हर तजल्ली आफ़्ताब-आलूद होना चाहिए