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ग़ज़ल
मुसाफ़िरों के दिलों में अजब ख़ज़ाने थे
ज़ियाँ सफ़र था मगर रास्ता न जाने क्या
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
मैं हासिदों के दिलों में हमेशा हूँ महफ़ूज़
अँधेरी क़ब्रों में रहता हूँ जगमगाता हुआ
अख़्तर ग्वालियारी
ग़ज़ल
बाग़ से आए हो मेरा घर भी चल कर देख लो
अब बहारों के दिनों में भी ख़िज़ाँ होने लगी