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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
मिरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे
ये चराग़ फिर भी चराग़ है कहीं तेरा हाथ जला न दे
बशीर बद्र
ग़ज़ल
तुझ को क़सम है ग़ुंचा-ए-ज़म्बक़ के नाक की
और शोर-ए-अंदलीब-ए-ग़ज़ल-ख़्वान की क़सम