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ग़ज़ल
क्या लाला क्या यू सौसन क्या नर्गिस-ओ-समन क्या
है ऊचा फ़िल-हक़ीक़त गुल है अगर चमन में
क़ुर्बी वेलोरी
ग़ज़ल
है तंग-दस्तियों के सबब ज़ो'फ़ इस क़दर
सब की हैं आँखें नर्गिस-ए-बीमार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
नर्गिस ओ गुल की खिली जाती हैं कलियाँ देखो सब
फिर भी उन ख़्वाबीदा फ़ित्नों को जगाती है बहार
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
बना है इक आलम-ए-तहय्युर नई फ़ज़ा है नया समाँ है
हयात के ये अजीब लम्हे न जाने क्या क्या पयाम लाए
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
हाए वो चश्म-ए-नर्गिस-ए-जाम-ए-शराब-ए-आतिशीं
गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार ने लूट लिया लुटा दिया
ख़ालिद हसन क़ादिरी
ग़ज़ल
आँखें न बदलें शोख़-नज़र क्यूँ के अब कि मैं
मफ़्तून-ए-लुत्फ़-ए-नर्गिस-ए-फ़त्ताँ नहीं रहा