aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "nasheb"
किसे नसीब कि बे-पैरहन उसे देखेकभी कभी दर ओ दीवार घर के देखते हैं
इक तुम कि तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ हैइक हम कि चल पड़े तो बहर-हाल चल पड़े
जो रह-ए-इश्क़ में क़दम रक्खेंवो नशेब-ओ-फ़राज़ क्या जानें
नशेब-ए-हस्ती से अफ़्सोस हम उभर न सकेफ़राज़-ए-दार से पैग़ाम आए हैं क्या क्या
नशेब-ए-शहर था यूँ रोज़-अफ़्ज़ूँमियान-ए-शहर ज़ीना बन रहा था
बड़े-बड़ों के नशेब-ओ-फ़राज़ देखे हैंकोई मिले तो सही जिस का सर झुका ही न हो
न हो ब-हर्ज़ा बयाबाँ-नवर्द-ए-वहम-ए-वजूदहनूज़ तेरे तसव्वुर में है नशेब-ओ-फ़राज़
जब मैं नशेब-ए-रंग-ओ-बू में उतरा उस की याद के साथओस में भीगी धूप लगी है नर्म हरी लचकीली सी
तिरी ख़ुदाई में शामिल अगर नशेब भी हैंतो फिर कलीम सर-ए-तूर क्यूँ बुलाए गए
ये हुक्म है कि अँधेरे को रौशनी समझोमिले नशेब तो कोह-ओ-दमन की बात करो
नशेब-ए-शाइरी में है हमारी ज़ात से रौनक़यही पत्थर है जिस को रात दिन लुढ़काए रखते हैं
पलट पड़ा हूँ शुआओं के चीथड़े ओढ़ेनशेब-ए-ज़ीना-ए-अय्याम पर असा रखता
कमान-ए-शाख़ से गुल किस हदफ़ को जाते हैंनशेब-ए-ख़ाक में जा कर मुझे ख़याल आया
नशेब-ए-वहम फ़राज़-ए-गुरेज़-पा के लिएहिसार-ए-ख़ाक है हद पर हर इंतिहा के लिए
गुज़र रही थी ज़िंदगी गुज़र रही है ज़िंदगीनशेब के बग़ैर भी फ़राज़ के बग़ैर भी
ज़वाल ऐसा कि सारे फ़राज़ पस्त हुएनशेब-ए-वहम बहुत था हद्द-ए-ग़ुमान के बाद
राह-ए-उल्फ़त न जिस ने तय की होवो नशेब-ओ-फ़राज़ क्या जाने
कद्द-ए-बाला ओ दामन-ए-कोताहमंज़िल-ए-इश्क़ के नशेब ओ फ़राज़
'दानिश' कई नशेब-ए-नज़र से गुज़र गएहर रिंद आइने की तरह मय-कदे में था
वो क्या समझ सकेंगे नशेब-ओ-फ़राज़-ए-दहरजो चल रहे हैं राह को हमवार देख कर
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