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ग़ज़ल
नाम को ऐ दिल न रख अस्बाब-ए-इस्लाह-ए-जुनूँ
वादी-ए-वहशत में चल कर नश्तर-ए-हर-ख़ार तोड़
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
तुम ने देखी ही नहीं दश्त-ए-वफ़ा की तस्वीर
नोक-ए-हर-ख़ार पे इक क़तरा-ए-ख़ूँ है यूँ है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ख़ून-ए-गुल जब रग-ए-हर-ख़ार से जारी हो जाए
क्यों न फिर लुत्फ़ बहारों का ख़िज़ाँ में आए
जहूर बिस्वानी
ग़ज़ल
नोक-ए-हर-ख़ार नज़र आती है क्यूँ तिश्ना-ए-ख़ूँ
दश्त-ए-पुर-ख़ार में क्या कोई ग़ज़ाल आता है
ख़ुर्शीदुल इस्लाम
ग़ज़ल
नोक-ए-हर-ख़ार से था बस-कि सर-ए-दुज़दी-ए-ज़ख़्म
चूँ नमद हम ने कफ़-ए-पा पे 'असद' दिल बाँधा
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हर ख़ार-ओ-ख़स से वज़्अ निभाते रहे हैं हम
यूँ ज़िंदगी की आग जलाते रहे हैं हम
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
क्यूँ जानते हैं सनअत-ओ-हिरफ़त को बाग़-ए-ख़ुल्द
ग़ैरों की हम निगाह में हैं ख़ार आज-कल