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ग़ज़ल
नस्र में जो कुछ कह नहीं सकता शेर में कहता हूँ
इस मुश्किल में भी मुझ को आसानी होती है
अफ़ज़ल ख़ान
ग़ज़ल
आयत नहीं हदीस नहीं जिस को मानिए
है नज़्म-ओ-नस्र अहल-ए-सुख़न सर-बसर ग़लत
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
हज़ार तल्ख़ है लहजा किसी का 'नस्र' तो क्या
ज़बाँ में अपनी मगर तुम मिठास रहने दो
एम. नसरुल्लाह नसर
ग़ज़ल
ग़ज़ल होती है जब तख़्लीक़ तो ऐ 'नस्र' उस लम्हे
ख़यालों के समुंदर में सुख़नवर डूब जाता है
एम. नसरुल्लाह नसर
ग़ज़ल
हो तुझ से गुफ़्तुगू मिरी हर नज़्म-ओ-नस्र में
मेरे तख़य्युलात में ऐसा कमाल दे
अन्जुमन मंसूरी आरज़ू
ग़ज़ल
मता-ए-दहर पर ऐ 'नस्र' इतना नाज़ क्या करना
अदम की राह में सारा ख़ज़ाना छूट जाता है
एम. नसरुल्लाह नसर
ग़ज़ल
वो लुत्फ़ वो मिठास कहाँ सब को है नसीब
नज़्म-ओ-नस्र को देख लो शीरीं बयान है