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ग़ज़ल
नाला-ए-दिल में मिरे अब वो असर हो कि न हो
क्या पता उन को मिरे ग़म की ख़बर हो कि न हो
नासिर अंसारी
ग़ज़ल
गिरवीदा जिस के हुस्न का सारा जहान है
करते हैं जिस से इश्क़ वो उर्दू ज़बान है
अब्दुल क़ादिर अहक़र अज़ीजज़ि
ग़ज़ल
सोज़-ए-ग़म चीज़ है क्या कुछ हमें मा'लूम तो हो
ये मरज़ है कि दवा कुछ हमें मा'लूम तो हो
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
ग़ज़ल
कहा झुँझला के अहल-ए-क़ाफ़िला से एक रहबर ने
अभी तो पहली मंज़िल है अभी से क्यूँ लगे डरने
अम्न लख़नवी
ग़ज़ल
हम ज़माने से फ़क़त हुस्न-ए-गुमाँ रखते हैं
हम ज़माने से तवक़्क़ो ही कहाँ रखते हैं
सय्यद ज़मीर जाफ़री
ग़ज़ल
जंगल जंगल सहरा सहरा सिर्फ़ ग़म-ए-उफ़्ताद हुए
अहल-ए-जुनूँ पर इश्क़ की रहमत वीराने आबाद हुए
मसूद अख़्तर जमाल
ग़ज़ल
बर-सर-ए-लुत्फ़ आज चश्म-ए-दिल-रुबा थी मैं न था
ढूँढती मुझ को निगाह-ए-आश्ना थी मैं न था