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ग़ज़ल
प्रकाश नाथ प्रवेज़
ग़ज़ल
चुप के बंधन टूटेंगे तो पाँव में लोहा बोलेगा
फिर देखोगे साँस के सारे रिश्ते-नाते टूट गए
शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा
ग़ज़ल
बरसती आग से कुछ कम नहीं बरसात सावन की
जला कर ख़ाक कर देती है दिल को रात सावन की
राजेन्द्र नाथ रहबर
ग़ज़ल
सोचों के बन-बास में आख़िर कुछ तो सूझ ही जाएगा
ये रस्तों का पेच-ओ-ख़म ख़ुद मंज़िल भी दिखलाएगा
सज्जाद हैदर
ग़ज़ल
हाल हमारा क्या पूछो हो आग दबी उकसाओ हो
शो'ले कब के राख हुए अब ख़ाक उन्हें लहकाओ हो
रिज़्वानुल्लाह
ग़ज़ल
क्या ख़बर थी रंजिशें ही दरमियाँ रह जाएँगी
हम गले मिलते रहेंगे दूरियाँ रह जाएँगी
अशोक मिज़ाज बद्र
ग़ज़ल
हर सू मौसम नूर पे था जब मीलादों सत-सँगों का
था झंकार पे राग बसंती सूफ़ी सुन्नत मलँगों का
परवेज़ रहमानी
ग़ज़ल
वहाँ साहिलों पे बशारतों का चराग़ भी है जला हुआ
यहाँ हाथ मेरे बंधे हुए मिरा बादबान छिदा हुआ
क़य्यूम ताहिर
ग़ज़ल
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
रिश्तों में भी आई सियासत कैसी बे-ईमानी है
हैं सारे अल्फ़ाज़ शगुफ़्ता लहजे में वीरानी है
मक़सूद अनवर मक़सूद
ग़ज़ल
'इश्क़ में देखीं न दीवानों ने रह की ख़्वारियाँ
'अक़्ल वाले घर में करते रह गए तय्यारियाँ