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ग़ज़ल
ये सुस्त है तो फिर क्या वो तेज़ है तो फिर क्या
नेटिव जो है तो फिर क्या अंग्रेज़ है तो फिर क्या
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
सर-ए-मक़्तल-ए-शब-ए-आरज़ू रहे कुछ तो इश्क़ की आबरू
जो नहीं अदू तो 'फ़राज़' तू कि नसीब-ए-दार कोई तो हो
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
वो दोस्ती तो ख़ैर अब नसीब-ए-दुश्मनाँ हुई
वो छोटी छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
महशर का ख़ैर कुछ भी नतीजा हो ऐ 'अदम'
कुछ गुफ़्तुगू तो खुल के करेंगे ख़ुदा के साथ
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
राज़ इलाहाबादी
ग़ज़ल
नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में गुलों से खेलती होगी
किसी की आख़िरी हिचकी किसी की दिल-लगी होगी