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ग़ज़ल
सुर्ख़ चश्म इतनी कहीं होती है बेदारी से
लहू उतरा है तिरी आँखों में ख़ूँ-ख़्वारी से
नवाब मोहम्मद यार ख़ाँ अमीर
ग़ज़ल
असास-ए-ज़िंदगी 'नव्वाब' है उम्मीद फ़र्दा की
यही दिल के ख़राबे को परी-ख़ाना बनाती है
नवाब देहलवी
ग़ज़ल
क़िस्सा तो ज़ुल्फ़-ए-यार का तूल ओ तवील है
क्यूँकर अदा हो उम्र का रिश्ता क़लील है
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
ग़ज़ल
ऐसा हुआ है यार मिरे इम्तिहाँ से ख़ुश
बुलबुल हो जैसे वस्ल-ए-गुल-ए-बोस्ताँ से ख़ुश
इनायत अली ख़ान इनायत
ग़ज़ल
दिल मेरा सैद सीने में है ज़ुल्फ़-ए-यार का
है बुल-अजब हरम में तरीक़ा शिकार का
मुंशी मोहम्मद हयात ख़ाँ मज़हर
ग़ज़ल
सैकड़ों तूती-ज़बाँ हैं याँ असीर-ए-दाम-ए-ग़म
ख़ाना-ए-सय्याद और ये गुम्बद-ए-गर्दां है एक
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
है जिस में क़ुफ़्ल-ए-ख़ाना-ए-ख़ुम्मार तोड़िए
या'नी दर-ए-बहिश्त को यकबार तोड़िए
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ख़ून-ए-जिगर से ज़ीस्त की उम्मीद थी मगर
वो भी ब-हुक्म-ए-शरअ'-ए-मोहब्बत नहीं रहा
मुंशी मोहम्मद हयात ख़ाँ मज़हर
ग़ज़ल
असीरी में तबाही रौनक़-ए-काशाना हो जाए
क़फ़स ही नालों से जल कर चराग़-ए-ख़ाना हो जाए