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ग़ज़ल
रिंदों में यूँ ही बख़्शिश-ए-पीर-ए-मुग़ाँ रहे
हो लाख क़हत फिर भी ये दरिया रवाँ रहे
अब्दुस्सलाम नदवी
ग़ज़ल
किसी की आँख ने ख़्वाब-ए-तहय्युर तान रक्खा है
'नवेद' उस दाम-ए-यकताई में फँसना रह गया बाक़ी