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ग़ज़ल
न्याय का दा'वा करने वाले ये कैसा अन्याय
शहर में पानी गाँव में पानी छाई है बन बन धूप
रम्ज़ अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
हमारी हर नज़र तुझ से नई सौगंध खाती है
तो तेरी हर नज़र से हम नया पैमान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में फिर आ बसेंगे
बरहना-पाई वही रहेगी मगर नया ख़ार-ज़ार होगा