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ग़ज़ल
न हर्फ़-ए-हक़, न वो मंसूर की ज़बाँ, न वो दार
न कर्बला, न वो कटते सरों के नज़राने
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
कैसे दुखों के मौसम आए कैसी आग लगी यारो
अब सहराओं से लाते हैं फूलों के नज़राने लोग
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
इशारों से दिलों को छेड़ कर इक़रार करती हैं
उठाती हैं बहार-ए-नौ के नज़राने तिरी आँखें
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हैरत से तकता है सहरा बारिश के नज़राने को
कितनी दूर से आई है ये रेत से हाथ मिलाने को
सऊद उस्मानी
ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
दिल के ज़ख़्मों के भला किस को मयस्सर हैं चराग़
अश्क-दर-अश्क वो नज़राने बहुत याद आए
तनवीर अहमद अल्वी
ग़ज़ल
उम्र-भर ख़ून से लिक्खा है जिस अफ़्साने को
कितना कम रंग है उस शोख़ के नज़राने को
सईद अहमद अख़्तर
ग़ज़ल
क़दम यूँ बे-ख़तर हो कर न मय-ख़ाने में रख देना
बहुत मुश्किल है जान ओ दिल को नज़राने में रख देना
वासिफ़ देहलवी
ग़ज़ल
वाह साक़ी क्या निभाई रस्म-ए-अहल-ए-मै-कदा
सब को नज़रों के हमें शीशे के पैमाने दिए