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ग़ज़ल
दुनिया के नेक-ओ-बद से काम हम को 'नियाज़' कुछ नहीं
आप से जो गुज़र गया फिर उसे क्या जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ग़ज़ल
हवस होगी असीर-ए-हल्क़ा-ए-नेक-ओ-बद-ए-आलम
मोहब्बत मावरा-ए-फ़िक्र-ए-नंग-ओ-नाम है साक़ी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
भला मख़्लूक़ ख़ालिक़ की सिफ़त समझे कहाँ क़ुदरत
उसी से नेति नेति ऐ यार दीदों ने पुकारा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
इन्हीं आँखों से तू ने नेक-ओ-बद आलम का देखा है
इधर तो देख ऐ सारी ख़ुदाई देखने वाले
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
जो ख़ालिस नेता है वा'दे का पक्का हो नहीं सकता
कि जैसे जेब में गंजे के कंघा हो नहीं सकता
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
हिसाब-ए-नेक-ओ-बाद जो भी हो हम इतना समझते हैं
बिना-ए-हश्र दर्द-ए-दिल पे चश्म-ए-तर पे रक्खी है
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
सिखा देता है इक़बाल आदमी को नेक-ओ-बद आख़िर
ये दौलत है वो शय शान-ए-रियासत आ ही जाती है