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ग़ज़ल
दिल की चोरी में जो चश्म-ए-सुर्मा-सा पकड़ी गई
वो था चीन-ए-ज़ुल्फ़ में ये बे-ख़ता पकड़ी गई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
वो निगाह-ए-चश्म-ए-तिलिस्म-गर मुझे देखते ही लजा गई
वो अदा जो सहर-ए-तमाम से भी सिवा करिश्मा दिखा गई
नियाज़ हैदर
ग़ज़ल
नूर-ए-ईमाँ सुर्मा-ए-चश्म-ए-दिल-ओ-जाँ कीजिए
पर्दा-दार-ए-हुस्न-ए-यकता चश्म-ए-हैराँ कीजिए
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
इक नज़र तू ने न देखा बिस्मिलान-ए-ज़ार को
लोग तेरा ज़िक्र-ए-चश्म-ए-सुर्मा-सा करते रहे
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
नज़र आईं मुझे तक़दीर की गहराइयाँ इस में
न पूछ ऐ हम-नशीं मुझ से वो चश्म-ए-सुर्मा-सा क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
वुफ़ूर-ए-नश्शा से रंगत सियाह सी है मिरी
जला हूँ मैं भी अजब चश्म-ए-सुर्मा-सा के लिए
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
क्या ख़ाक आब-दारी-ए-तेग़ उस से हो कि है
वो चश्म-ए-सुर्मा-सा जो ब-संग-ए-फ़साँ फ़ुसूँ
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
चश्मक मिरी वहशत पे है क्या हज़रत-ए-नासेह
तर्ज़-ए-निगह-ए-चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ तो देखो