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ग़ज़ल
उन के बिखरे हुए गेसू नहीं हटते रुख़ से
आज निकले हैं वो झुरमुट में निगहबानों के
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
क्या ख़बर ख़ेमा-ए-लैला के निगहबानों को
कि हरीम-ए-दिल-ए-लैला में है मेहमान-ए-जुनूँ
रविश सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हिफ़्ज़-ए-गुल के लिए रखते जो निगहबाँ कुछ और
हो गया फूलों से महरूम गुलिस्ताँ कुछ और
अहसन अली ख़ाँ
ग़ज़ल
असीरों की रिहाई से कोई ख़तरा नहीं लेकिन
निगहबानों को ये डर है कि ज़िंदानों का क्या होगा
अशरफ़ रफ़ी
ग़ज़ल
तबाही बस्तियों की है निगहबानों से वाबस्ता
घरों का रंज वीरानी है मेहमानों से वाबस्ता
राही कुरैशी
ग़ज़ल
हमारी सादा-लौही ने हमें बर्बाद कर डाला
दिला कर ख़ौफ़ रहज़न का निगहबानों की बन आई
मुस्लिम अंसारी
ग़ज़ल
मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो