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ग़ज़ल
ये मुमकिन है कि यूँ हम ने तुम्हें अक्सर रुलाया हो
मगर ये भी तो है तुम ने हमें अक्सर सताया हो
अलख निरंजन
ग़ज़ल
कहने को इक भीड़ लगी है इस संसार के मेले में
जिस के भीतर झाँक के देखो एक निरंजन शो'ला है