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ग़ज़ल
कौन सा वो जादू है जिस से ग़म की अँधेरी सर्द गुफा में
लाख निसाई साँस दिलों के रोग मिटाने आ जाते हैं
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
निसाई कर्ब लिखने का हुनर हम को ही आता है
हुकूमत अपनी साबित कर रहे हैं मर्द काग़ज़ पर
सिया सचदेव
ग़ज़ल
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गए
तिरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से