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ग़ज़ल
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गए
तिरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
वही शख़्स जिस पे अपने दिल-ओ-जाँ निसार कर दूँ
वो अगर ख़फ़ा नहीं है तो ज़रूर बद-गुमाँ है
बशीर बद्र
ग़ज़ल
वो मय दे दे जो पहले शिबली ओ मंसूर को दी थी
तो 'बेदम' भी निसार-ए-मुर्शिद-ए-मय-ख़ाना हो जाए
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
हम ने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर
दिल से गुज़री हैं सितारों की बरातें अक्सर