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ग़ज़ल
और बा-मा'नी हुआ तश्कीक का पिछ्ला निसाब
क्या कहूँ अहल-ए-यकीं ने क्या गुमाँ पर लिख दिया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
वही रिवायत गज़ीदा-दानिश वही हिकायत किताब वाली
रही हैं बस ज़ेर-ए-दर्स तेरे किताबें पिछले निसाब वाली
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
मर्द-ए-दरवेश का सरमाया है आज़ादी ओ मर्ग
है किसी और की ख़ातिर ये निसाब-ए-ज़र-ओ-सीम