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ग़ज़ल
साक़ी अपना रिंद भी अपने तोड़ गया पैमाने कौन
मय-ख़्वारों में नफ़रत फैली आया था बहकाने कौन
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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साक़ी अपना रिंद भी अपने तोड़ गया पैमाने कौन
मय-ख़्वारों में नफ़रत फैली आया था बहकाने कौन