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ग़ज़ल
सफ़र नक़वी
ग़ज़ल
जिन के पास नहीं हैं कपड़े तन को ढाँपने ख़ातिर
रातें ओढ़ते हैं वो काली धूप-नगर के बासी
ताहिर हनफ़ी
ग़ज़ल
एक अर्सा यहाँ ज़िंदगी अपनी तौलीद करती रही
इन खंडर ओढ़ते सब्ज़ा ज़ारों के दुख तुम नहीं जानते
मुनीर जाफ़री
ग़ज़ल
एक अर्सा यहाँ ज़िंदगी अपनी तौलीद करती रही
इन खंडर ओढ़ते सब्ज़ा-ज़ारों के दुख तुम नहीं जानते
मुनीर जाफ़री
ग़ज़ल
क्या ही शिकार-फ़रेबी पर मग़रूर है वो सय्याद बचा
ताइर उड़ते हवा में सारे अपने असारा जाने है