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ग़ज़ल
नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की
चाहते हैं सो आप करें हैं हम को अबस बदनाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
यार की मय-गूँ चश्म ने अपनी एक निगह से हम को 'नज़ीर'
मस्त किया औबाश बनाया रिंद किया बदनाम किया
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
थीं बनात-उन-नाश-ए-गर्दुं दिन को पर्दे में निहाँ
शब को उन के जी में क्या आई कि उर्यां हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बा'द
कितने चुप-चाप से लगते हैं शजर शाम के बा'द