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ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
सभी मजरूह हैं इस सैद-गाह-ए-ऐश-ओ-हिरमाँ में
किसी का ज़ख़्म ओछा है किसी का ज़ख़्म गहरा है
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
प्रीत-नगर की रीत नहीं है ऐसा ओछा-पन बाबा
इतनी सुध-बुध किस को यहाँ जो सोचे तन-मन-धन बाबा
इलियास इश्क़ी
ग़ज़ल
क्या लाला क्या यू सौसन क्या नर्गिस-ओ-समन क्या
है ऊचा फ़िल-हक़ीक़त गुल है अगर चमन में
क़ुर्बी वेलोरी
ग़ज़ल
किस को यक़ीन आएगा यारो मेरा मसीहा क़ातिल है
दिल के सैंकड़ों अरमानों का एक अकेला क़ातिल है