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ग़ज़ल
कोई ऐसा तरीक़ा बता तेरी आवाज़ को चूम लूँ
उफ़ ये तेरा ''फ़रीहा! मिरी जान'' कह कर बुलाना मुझे
फ़रीहा नक़वी
ग़ज़ल
शमीम जयपुरी
ग़ज़ल
कहा मैं ने कि है सोज़-ए-जिगर और उफ़ नहीं करता
कहा इस की इजाज़त ही नहीं फिर नौहागर क्या हो
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
उफ़ इक दिल-ए-'रहबर' पे हसीनों की ये तकरार
ललचाएँ हमीं हम इसे पा जाएँ हमीं हम