aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "omnii"
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी हैकि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं
अपनी महरूमियाँ छुपाते हैंहम ग़रीबों की आन-बान में क्या
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्तसब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँअगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा
ख़ुश रहे तू कि ज़िंदगी अपनीउम्र भर की उमीद-वारी है
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गयाइतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजीगोया हर सम्त से जवाब आए
नहीं बे-हिजाब वो चाँद सा कि नज़र का कोई असर न होउसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो
इस की वो जाने उसे पास-ए-वफ़ा था कि न थातुम 'फ़राज़' अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते
इतना मानूस न हो ख़ल्वत-ए-ग़म से अपनीतू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा
तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबूऔर उतनी ही बे-मुरव्वत हो
इतनी मुद्दत बा'द मिले होकिन सोचों में गुम फिरते हो
अभी तलक तो न कुंदन हुए न राख हुएहम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं
हासिल-ए-कुन है ये जहान-ए-ख़राबयही मुमकिन था इतनी उजलत में
ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं नेबस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला
तेग़-बाज़ी का शौक़ अपनी जगहआप तो क़त्ल-ए-आम कर रहे हैं
हर कोई अपनी ही आवाज़ से काँप उठता हैहर कोई अपने ही साए से हिरासाँ जानाँ
कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँसुन रहा हूँ कि घर गया हूँ मैं
फूल से रंग जुदा होना कोई खेल नहींअपनी मिट्टी को कहीं छोड़ के जाएँ कैसे
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दोन जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
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