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ग़ज़ल
तू ये न समझ लिल्लाह कि है तस्कीन तिरे दीवानों को
वहशत में हमारा हँस पड़ना दर-अस्ल हमारा रोना है
साग़र निज़ामी
ग़ज़ल
जानते हैं कि तुम्हें फ़र्क़ न पड़ना कोई
अपनी पलकों पे सो हम अश्क सजाते भी नहीं
ज्योती आज़ाद खतरी
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
मुझ से बेहतर होंगे लाखों मैं लाखों में बेहतर हूँ
इस उलझन में पड़ना भी क्या इस उलझन में रक्खा क्या