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ग़ज़ल
टूटने के नहीं ग़फ़लत के तिलिस्मात 'अयाज़'
आलम-ए-ख़्वाब में पा-बस्ता-ए-ज़ंजीर हो तुम
अयाज़ आज़मी
ग़ज़ल
वो सरकश है अगर मौक़ा मिले फ़ित्ना खड़ा कर दे
हम अपने नफ़्स को पा-बस्ता-ए-ज़ंजीर रखते हैं
सईद अहसन
ग़ज़ल
उफ़ रे ये शोर-ए-सलासिल नींद सब की उड़ गई
दो रिहाई आ के तुम पा-बस्ता-ए-ज़ंजीर को
योगेन्द्र बहल तिश्ना
ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-गुल दश्त-ए-ख़िरद में है अगरचे मौजूद
मुझ को पा-बस्ता-ए-ज़ंजीर-ए-जुनूँ रहने दे
अख़लाक़ बन्दवी
ग़ज़ल
क्या करें पा-बस्ता-ए-कू-ए-बुताँ हैं वर्ना हम
करते जूँ फ़रहाद ओ मजनूँ दश्त-ओ-कोहिस्ताँ में धूम
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
हर शख़्स है पा-बस्ता-ब-ज़ंजीर लिखे कौन
इस अहद-ए-पुर-आशोब की तफ़्सीर लिखे कौन
रेहान अहमद तान्त्रे
ग़ज़ल
वो बस्ता-ए-ज़ंजीर-ए-ख़मोशी हूँ कि ता-हश्र
निकले मिरे नाले भी न ज़िंदान से बाहर
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
रात दिन 'आजिज़' नवाज़ी उन को अब मंज़ूर है
क्यों न हो फिर बस्ता-ए-ज़ंजीर-ए-एहसाँ इन दिनों
मोहम्मद इब्राहीम आजिज़
ग़ज़ल
असीर-ए-वहम हूँ पा-बस्ता-ए-गुमाँ हूँ मैं
यक़ीं कि हद से अभी दूर हूँ जहाँ हूँ मैं