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ग़ज़ल
कुछ न पाई दिल ने तस्कीं और कुछ पाई तो क्या
ऐसी सूरत से तिरी सूरत नज़र आई तो क्या
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
गर एक शब भी वस्ल की लज़्ज़त न पाए दिल
फिर किस उमीद पर कोई तुम से लगाए दिल
आग़ा मोहम्मद तक़ी ख़ान तरक़्क़ी
ग़ज़ल
क़यामत है जो ऐसे पर दिल-ए-उम्मीद-वार आए
जिसे वादे से नफ़रत हो जिसे मिलने से आर आए
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
कहीं भी हो नज़र आता है पर दिल में सनम मुझ को
ख़ुदा ने बख़्श कर दिल दे दिया है जाम-ए-जम मुझ को
अब्दुल मलिक सोज़
ग़ज़ल
जिस पर दिल रोता है वो भी हँस कर करना पड़ता है
अपने घर की रौनक़ को ख़ुद बे-घर करना पड़ता है
मासूम अंसारी
ग़ज़ल
है यूरिश-ए-ग़म दिल पर दिल कुश्ता-ए-ग़म तन्हा
इक तुम ही नहीं दिल पर माइल-ब-करम तन्हा
अम्बर देहलवी
ग़ज़ल
किसी के गेसू-ए-पुर-पेच पर दिल-दार बैठे हैं
वो अब क्या जीत सकते हैं जो बाज़ी हार बैठे हैं