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ग़ज़ल
मैं तो पापी मेरी ख़ातिर अपना सब कुछ दान किया क्यूँ
दुनिया जैसी प्यारी बस्ती ऐसे छोड़ के जाना था
यूसुफ़ तक़ी
ग़ज़ल
दिल ऐसे पुराने पापी को क्या काम है दीन-ओ-ईमाँ से
वो साज़-ए-कलीसा सोज़-ए-हरम कुछ कह न सके कुछ भूल गए
सरवर आलम राज़
ग़ज़ल
ऐसे कहाँ नसीब हमारे बायाँ अंग फड़क उट्ठे
कौन ख़बर है दुखिया जाग में हम पापी दुखियारों की
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
जिस देश में गंगा बहती है उस देस के बासी पापी हैं
होती है जंग ज़बानों पर मज़हब पे लड़ाई होती है
अमीर चंद बहार
ग़ज़ल
परवाना-ए-हुस्न का शैदाई पापी भँवरा रस का लोभी
चाहत को सौदाई समझे उस को हरजाई क्या जाने