आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "paas-e-hijaab-o-hayaa"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "paas-e-hijaab-o-hayaa"
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मोहम्मद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
हिजाब-ए-ज़ाहिर-ओ-बातिन भी दरमियाँ में नहीं
अब इम्तियाज़ कोई मेरे जिस्म-ओ-जाँ में नहीं
वहशी कानपुरी
ग़ज़ल
है सौ अदाओं से उर्यां फ़रेब-ए-रंग-ए-अना
बरहना होती है लेकिन हिजाब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ
ऐसे पस-मंज़र में क्या रहना सर-ए-मंज़र तो आ