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ग़ज़ल
अव्वल अव्वल बोल रहे थे ख़्वाब-भरी हैरानी में
फिर हम दोनों चले गए पाताल से गहरे राज़ में चुप
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
पाताल के दुख वो क्या जानें जो सत्ह पे हैं मिलने वाले
हैं एक हवाला दोस्त मिरे और एक हवाला घर में है
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
विसाल-ओ-हिज्र के जंजाल में पड़ा हुआ हूँ
में अर्श-ए-रौ कहाँ पाताल में पड़ा हुआ हूँ