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ग़ज़ल
पड़ा रहने दो अपने बोरिए पर हम फ़क़ीरों को
फटी रह जाएँगी आँखें जो मुट्ठी खोल दी हम ने
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
आँख पे पट्टी बाँध के मुझ को तन्हा छोड़ दिया है
ये किस ने सहरा में ला कर सहरा छोड़ दिया है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
ख़ुद-ग़र्ज़ियों के साए में पाती है परवरिश
उल्फ़त को जिस का सिद्क़ ओ सफ़ा नाम रख दिया
गोपाल मित्तल
ग़ज़ल
सरापा हुस्न-ए-समधन गोया गुलशन की कियारी है
परी भी अब तो बाज़ी हुस्न में समधन से मारी है