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ग़ज़ल
पूछा सता के रंज क्यूँ बोले कि पछताना पड़ा
पूछा कि रुस्वा कौन है बोले दिल-आज़ारी मिरी
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
एक अछूता मंज़र मुझ को छू कर गुज़रा था अब तो
पछताना है ख़ुद में डूबे रहने की नादानी पर
अखिलेश तिवारी
ग़ज़ल
दे के दिल ग़ुस्से में वापस उन को पछताना पड़ा
क्या रक़म जाती रही है हाथ से आई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
आज तो जूँ-तूँ कट जाएगा कल की सोचो क्या होगा
जो गुज़री सो गुज़र चुकी इतराना क्या पछताना क्या
ख़लीक़ सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मोहब्बत में तो जान-ओ-दिल का नज़राना भी होता है
कफ़-ए-अफ़्सोस को मल मल के पछताना भी होता है
ख़ालिद कोटी
ग़ज़ल
मिट्टी के सब मिट्टी होना क्या पछताना क्या रोना
भेद भरम सब फ़ाश हुए जब दीन धर्म क्या तोले हो
इरफ़ान अहमद मीर
ग़ज़ल
पहले दिन से रीत है ये तो फिर इन में पछताना क्या
प्यार वफ़ा के खेल में 'आरिफ़' हो जाता है धोका भी
सय्यद अारिफ़
ग़ज़ल
कहता था मैं इस दिल को आशिक़ तो नहीं होना
अब बस के अगर समझा पछताना हुआ तो क्या