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ग़ज़ल
दिन ही पहाड़ है शब-ए-ग़म क्या हो क्या न हो
घबरा रहे हैं आज सर-ए-शाम ही से हम
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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दिन ही पहाड़ है शब-ए-ग़म क्या हो क्या न हो
घबरा रहे हैं आज सर-ए-शाम ही से हम